Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 190
________________ . ( १४१ ) शब्दों में ही वर्णन किया है (6) इससे प्रतीत हुआ कि गीता और उपनिषदों को ब्रह्म का एकान्त स्वरूप अभिमत नहीं किन्तु उनके मत में ब्रह्म, का स्वरूप व्यक्त, अव्यक्त सगुण, सगुण-निर्गुण और निर्गुण आदि रूप से अनेकान्त ही निर्णीत है। अपेक्षाकृत भेद से ब्रह्म में उक्त सभी विरोधी गुणों का समावेश सुकर है । इसी अभिप्राय से ब्रह्म के यथार्थ स्वरूप का प्रतिद्वन्द्वात्मक शब्दों में वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त पुराणों में भी ईश्वर के सगुण निर्गुण स्वरूप का वर्णन है इस वर्णन में भी अपेक्षावाद के सिद्धान्त की स्पष्ट झलक दिखाई देती है । उदाहरण के लिये कुछ वाक्य नीचे उद्धृत किये जाते हैं ब्रह्मैकं मूर्तिभेदस्तु, गुणभेदेन सन्ततम् । तद्ब्रह्म द्विविधं वस्तु, सगुणं निर्गुणंतथा ॥१॥ मायाश्रितो यः सगुणो, मायाततिश्च निर्गुणः । स्वेच्छामयश्चभगवानिच्छया विकरोतिच ॥२॥ इच्छा शक्तिश्च प्रकृतिः सर्व शक्तिः प्रसूः सदा । तत्र सक्तश्चसगणः, सशरीरी च प्राकृतः ॥३॥ निर्गुणस्तत्र निर्लिप्तः अशरीरी निरंकुशः। सचात्मा भगवानित्यः, सर्वाधारः सनातनः ॥४॥ (6) तदनुप्रविश्य सञ्चत्यच्चाभवन निरुक्तं चानिरुक्तं च निलयनं चा निलयनं च सत्यंचानृतं च इत्यादि । (ब्रह्मबल्ली २ अनुवाक ६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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