Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 171
________________ ( १२२ ) वह कारिका इस प्रकार है अनिरोध मनुत्पाद मनुच्छेद मशाश्वतम् । अनेकार्थ मनानार्थ मनागम मनिर्गमम् ॥ याप्रतीत्य समुत्पादं प्रपंचोपशमं शिवम् । देशयामास संबुद्ध स्तं बन्दे द्विपदां वरम् ॥१॥ भावार्थ-शिवरूप परम तत्व का उपदेश करने वाले सर्व श्रेष्ठ-बुद्ध भगवान को नमस्कार हो । परमतत्व, उत्पत्ति और विनाश वाला भी नहीं, तथा उसको स्थिर अथवा नित्य कह सकें ऐसा भी नहीं, एवं अस्थिर अथवा विनाशशील भी नहीं और उसे एक अथवा अनेक भी नहीं कह सकते एवं वह गमागम [ आना अथवा जाना ] से भी रहित है । तात्पर्य कि छै कल्पों में से एकान्ततया कोई भी उस परमतत्व में संघटित नहीं हो सकता इसके सिवाय माध्यमिक कारिका का एक और पाठ देखिये । बुद्धों के उपदेश का सार बतलाते हुए महामति नागार्जुन लिखते हैं"अात्मेत्यपि प्रज्ञपित मनात्मेत्यपि देशितम्"। "बुद्धनात्मा नचानात्मा कश्चिदित्यपि देशितम्" ॥ ___ अर्थात् बुद्धों ने (बुद्ध भगवान् ने)-आत्मा है ऐसा उपदेश भी किया है तथा अनात्मा है ऐसा उपदेश भी दिया है। एवं आत्मा भो नहीं और अनात्मा भो नहीं ऐसा भी कहा है इत्यादि। बुद्ध भगवान् के इस उपदेश की संगति, अपेक्षावाद के सिद्धान्त का अनुसरण किये बिना कभी नहीं हो सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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