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[अनेकान्तवाद का स्वरूप और पर्याय ]
अनेकान्तवाद जैन दर्शन का मुख्य विषय है। जैन- तत्व । ज्ञान की सारी इमारत अनेकान्तवाद के सिद्धान्त पर अवलम्बित है वास्तव में इसे जैन दर्शन की मूल भित्ति समझना चाहिये । अनेकान्त शब्द, एकान्तत्व-सर्वथात्व-सर्वथा एवमेवइस एकान्त निश्चय का निषेधक और विविधता का विधायक है सर्वथा एक ही दृष्टि से पदार्थ के अवलोकन करने की पद्धति को अपूर्ण समझकर ही जैन दर्शन में अनेकान्तवाद को मुख्य स्थान दिया गया है। अनेकान्तवाद का अर्थ है, पदार्थ का भिन्न भिन्न दृष्टि हिन्दुओं-अपेक्षाओं से पर्यालोचन करना, तात्पर्य कि एक ही पदार्थ में भिन्न २ वास्तविक धर्मों का सापेक्षतया स्वीकार करने का नाम अनेकान्तवाद है । यथा एक ही पुरुष अपने भिन्न २ सम्बन्धिजनों की अपेक्षा से पिता पुत्र और भ्राता आदि संज्ञायों से सम्बोधित किया जाता है इसी प्रकार अपेक्षा भेद से एक ही वस्तु में अनेक धर्मों की सत्ता प्रमाणित होती है। . ___ स्याद्वाद, अपेक्षावाद और कथंचित्वाद अनेकान्तवाद के ही पर्याय-समानार्थवाची शब्द हैं । स्यात्' का अर्थ है
नोट-कितने एक लोग स्यात का अर्थ. शायद, कदाचित इत्यादि संशय रूप में करते हैं परन्तु यह उनका भ्रम है ।
१-पत्र सर्वथात्व निषेध कोऽनेकान्त ताद्योतकः कथंचिदस्याच्छब्दो निपातः । इति. पंचास्तिकाय टीका (अमृत चंद्र सूरि श्लो० १४. की व्याख्याः पृ० ३०)
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