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चन्द्रप्रमचरितम्
[१५] संस्कृत व्याख्या
नाम - प्रस्तुत ग्रन्थ के साथ मुद्रित संस्कृत व्याख्याका सम्पादन जिन आदर्श ह० लि० प्रतियोंके आधारपर किया गया है, उनके पुष्पिकावाक्योंके अनुसार यह 'व्याख्या' नहीं 'व्याख्यान' है और इसका नाम 'विद्वन्मनोवल्लभ' है, पर 'श' प्रति ( सर्ग ११ ) के पुष्पिकावाक्यको ध्यान में रखकर सौन्दर्य की दृष्टिसे चं० च० के ऊपर व्याख्याका नाम 'विद्वन्मनोवल्लभा' प्रकाशित किया गया है, और अन्दर 'विद्वन्मनोवल्लभ', यद्यपि समस्यन्त पदके कारण इतना सूक्ष्म अन्तर बादमें ज्ञात हो पाता है ।
विशेषता -- प्रस्तुत व्याख्या साधारण सी ही है । विज्ञ पाठकों को इसमें स्वयं व्याख्याकार की कुछ अशुद्धियाँ दृष्टिगोचर होंगी । अलङ्कारोंके निर्देश भी यत्र-तत्र भ्रान्तिपूर्ण हैं । पर इसकी सबसे बड़ी विशेषता शुद्धपाठों की बहुलता है, जिसके कारण मूल ग्रन्थके सम्पादन में बड़ी सहायता मिली है । मूल ग्रन्थके पदों को अन्वयके अनुसार रखकर उनकी व्याख्या की गयी है । इसके साहाय्यसे दार्शनिक अंशको छोड़कर प्रायः पूरे मूलग्रन्थका अर्थ खुल जाता है | व्याकरण और कोष आदि ग्रन्थोंके इसमें जो उद्धरण दिये गये हैं वे महत्त्वपूर्ण हैं । इसकी तुलना अर्हदास के मुनिसुव्रतकाव्य की संस्कृत टीका- 'सुखबोधिनी' से की जा सकती है ।
व्याख्याकारका परिचय - इस व्याख्या के रचयिताका नाम 'मुनिचन्द्र' है । इन्होंने अपनेको 'विद्यार्थी' लिखा है । ' कन्नडप्रान्तीय - ताडपत्र ग्रन्थ सूची' ( पृ० १२३ ) के जनुसार ये अलगंचपुरी के निवासी द्विजोत्तम देवचन्द्रके पुत्र थे ।
व्याख्याकारका समय
प्रस्तुत व्याख्या में अनेकार्थध्वनिमंजरी, अनेकार्थसंग्रह, अभिधानचिन्तामणि, अमरकोष, नाममाला, नानार्थकोष ( गद्यात्मक ), नीतिवाक्यामृत, वाग्भटालङ्कार, विश्वप्रकाश, विश्वलोचन, वैजयन्ती, शाकटायन और समवसरण स्तोत्र - इत्यादि ग्रन्थोंके अवतरण हैं । इनमें अनेकार्थ संग्रह और अभिधानचिन्तामणि के रचयिता आ हेमचन्द्र ( वि० १२ वीं शती) हैं, अतः व्याख्याकार इनके उत्तरवर्ती सिद्ध होते हैं । चं० च० ( १८,१, पृ० ४२९ ) की व्याख्या में गंभीरं मधुरं सेनके समवसरण-स्तोत्र ( प० २९ ) और वि० १३ वीं यदि यह पद्य आचारसारका ही सिद्ध हो जाये तो व्याख्याकार इनके बादके सिद्ध होते | भा० ज्ञानपीठसे प्रकाशित ' कन्नड प्रान्तीय- ताडपत्र - ग्रन्थसूची ( पृ० १२३ ) के अनुसार व्याख्याकारका समय 'प्रमोदूत' ( प्रमोद ) संवत्सर माघ शु० प्रतिपद् रोहिणी नक्षत्र है, जिसे पं० कमलाकान्तजी शुक्ल, प्रा० ज्योतिष विभाग, वा० सं० वि० वि०, वाराणसीने वि० सं० १५६० ( शक सं० १४२५ ) माघ शुक्ला प्रतिपद् शनिवार प्रमाणित किया है ।"
इत्यादि पद्य उद्धृत है, जो अज्ञातसमय विष्णुशतीके आचारसार ( ४,९५ ) में पाया जाता है ।
१. प्रस्तुत 'प्रमोदूत' ( प्रमोद ) संवत्सर वि० सं० १५६० ( शक सं० १४२५ ) माघ शुक्ला प्रतिपद् शनिवार घटी ५३।४८ श्रवण नक्षत्र में सिद्ध होता है । जिसका नियामक ग्रहलाघवीय ऋणाहर्गण १८९० तथा मध्यम सूर्य ९।१८।४२।४७ त्रिफल चन्द्रमा ९।१९।४६ है ।
विशेष - माघ शुक्ला प्रतिपद्को रोहिणी नक्षत्र का होना संभव नहीं है, जैसा कि सूर्यसिद्धान्त मान अध्याय श्लोक १६ से ज्ञात होता है
'कार्तिकादिषु संयोगे कृत्तिकादिद्वयं द्वयम् ।
अन्योपान्त्यो पञ्चमश्च त्रिधा मासत्रयं स्मृतम् ॥'
इस आधारपर माघ शुक्ला पूर्णिमाको श्लेषा या मत्राका होना संभव है । इससे पूर्व पन्द्रहवें दिन प्रतिपद्को श्रवण या घनिष्ठा नक्षत्र हो सकता है, न कि रोहिणी ।
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