Book Title: Chandra Pragnaptisutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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चन्द्रप्राप्तिसूत्रे
ता कालोपण समुद्दे केवइप चक्कवालविक्खमेणं ? केवइप परिक्खेवेणं आहिएतिवपज्जा ' ता कालोपणं समुद्दे अट्ठ जोयणसय सहम्साई चक्कवालविक्संमेणं पण्णत्ते, एक्काणउई जोयणसयस हस्लाई, सत्ता च सहस्साई, छच्च पंचुत्तरे जोयणसर किंचि विसेसाहिए परिकखेवेणं आहिए-ति वपज्जा । ता कालोपणं समुद्दे केवडया चंदा पभासिंसु वा ३ पुच्छा, ता कालोपणं समुद्दे वायालीसं चंदा पभासिसु वा ३ वायालीसं सूरिया तfर्वसु ३, एक्कारस छावत्तरा णक्खत्तसया जोयं जाइ सु वा ३, तिन्नि सहस्सा छच्च छण्णउया महग्गगहसया चारं चरिंसु वा ३ अट्ठावीसं च सगसहस्साई वारस सहस्साई नव य सयाई पण्णासा तारागण कीडो कोडीओ सोभ सोभिनु वा सोभति वा सोभिस्सति वा, गाहाओ - "पक्काणउईसन्तराई सहस्साई परिरओ तस्स | अहियाई छच्च पंचुत्तरा कालोदहिवरस्स ||१|| वायालीस चंद्रा, वायालीसं च दिणयरा दित्ता । कालोद. हिम्मिए, चरंति संवडलेसागा ||२|| णक्वत्तसहस्से एगमेव छावत्तरं न सयमणं । छत्रसया छण्णउया, महग्गहा तिपेण य सहस्सा ||३|| अट्ठावीस कालोदहिम्मि वारस य सहरलाई । णव य सया पण्णासा तारागण कोडि कोडीणं ||४|| "
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तां कालो यं णं समुई पुत्रखरवरे णामं दिवे व वलयागारसठाणसंठिए सच्चओ समता संपरिक्खित्ताणं चिह्न । ता पुक्खरवरेणं दीवे किं समचक्कवाल संठिए विसमचकवालसंठिए ? ता समचक्कवालसंठिए नो विसमचकवाचसंठिए । एवं विक्खंभो परिक्खेवो जोइस जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ ॥
ता पुक्खरचरेण दीवे केवइण समचक्कवाल विक्खमेण ! केवड परिक्खेवेणं ? ता सोलस जोयण सयसहस्साइ चक्कवालचिक्खमेणं, पगा जोयण कोडी वाणउ च सयसहस्साई अउणावन्नं च सहस्साई अट्ठचउ णउयाई जोयणसयाइ परिक्खेवेणं आहिप्रतिवपज्जा । ता पुक्खरवरेणं दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा ३, पुच्छा तहेव । ता चोयाल चंदसय पभासेंसु वा ३, चोयाल सूरियाणं सयं तविसु वा ३ चत्तारि सहस्साइ बत्तीसं च णक्खन्ता जोयं जोइसु वा ३, वारस सहस्साइ छच्च बोवत्तरा महग्गहसया चारं चरिंसु वा ३, छण्णउइ सय सहस्साई चोयालीसं सहस्साई चत्तारि य सयाइ तारागण कोडि कोडोओ सोभ सोर्भिसु वा ३ । गाहाओ - " कोडीवाणई खलु अउणाणउ भवे सहस्साइ । अट्ठसया चरणाउया य परिरओ पोक्खरवरस्स ||१|| चोत्ताल चंदसयं, चोत्ताल चैव सूरियाण सयं । पोक्खरवर दीवस्मि च चरति एए पभासंता ॥२॥ चचारि सहस्साइ, छत्तीसं चेव हुति णक्खत्ता । छच्छसया चावत्तर, महग्गहा चारह सहस्सा ||३|| छण्ण्उड सय सहस्सा, चोत्तालीस खलु भवे सहस्साइं । चत्तारि य सया खलु, तारागण कोडि कोडी ||४||
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ता पुक्खरवरस्स णं दीवस्स बहुमज्झदेसभाए चलयागारसंठाणसंठिए, जेणं पुक्खरवरदीवं दुहा विभयमाणे जहा - अभितरपुक्खरद्धं च वाहिरपुक्खरर्द्धच । ता समचक्रवालसंठिए विसमचक्रवालसंठिए ? ता समचक्कवाल संठिए । एवं विक्खंभो परिक्खेवो जोइस जाव ताराओ
माणुसुत्तरे णामं पव्चए विभयमाणे चिह्न, तं अभितरपुक्खरदेणं किं संठिए णो विसमचक्कवाल -

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