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देववंदन जाय अर्थसहित.
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विषे सर्व मलीने ( दोसगनऊया के० ) बने सत्ता (वा के ) वर्ण जाणवा ने ( नवसं पय के० ) नव संपदा जाणवी, तथा ( पर्यातिती स के ) पद तेत्रीस जाणवां.
हवे ( चेइयथय के० ) चैत्यस्तव एटले रि इंत चेश्याणने विषे सर्व मली (असंपय के० ) आठ संपदा जाणवी ने ( तिचत्तपय के ) तैंता लीश पद जाणवां, तथा ( वम के० ) वर्ष एटले कर ते ( सयगुणतीसा के० ) बरों ने नगल त्रीश जाणवा ॥ ३६ ॥
ये चैत्यस्तव जे अरिहंत चेश्याणं तेनी प्रत्येक संपदाना पदनुं मान तथा प्रत्येक संपदाना
श्रादिपद एटले धुरियां कहे बे.
5 ब सग नव तिय व चउ, बप्पय चिइ संपया पया पढमा || परिहं वंदण सिद्धा, अन्न सुहुम एव जा ताव ॥ ३७ ॥
अर्थ:- पहेली (डु के० ) वे पदनी, बीजी (व के० ) पदनी, त्रीजी ( सग के० ) सात पदनी,