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१७० गुरुवंदन जाप्य श्रर्थसहित.
ते इहां वंदनक सूत्रना व स्थानक मध्ये सर्व म ली अठ्ठावन पदनी संख्या बे, तिहां प्रथम स्था नकमां वामि, खमासमणो, वंदिनं, जावलिका ए, निसीहियाए, ए (पण के० ) पांच पद जालवां
तथा बीजा स्थानकमां प्रगुजाराद, मे, मि नग्गहं, ए ( तिग के० ) त्रण पद जाणवां, तथा त्रीजा स्थानक मध्ये निसीहि, अहो, कायं, काय संफासं, खमणिको, ने, किलामो, अप्पकिलंता एणं, बहुसोनेरा, ने, दिवसो, वकतो. ए ( बारस ho) बार पढ़ जावां, तथा चोथा स्थानकमां जत्ता, ने, ए ( डुग के० ) बे पद जाणवां, तथा पांचमा स्थानकमां जवणिऊं, च, ने, ए ( तिग के० ) त्रण पद जाणवां, तथा वा स्थानकमां खामेमि, खमासमणो, देवखियं, वइक्कमं, ए (च नरो के० ) चार पढ़ जाएगवां, एम (बाल के० ) स्थानकने विषे ( पय गुणतीसं के० ) नंग त्रीश पद जाणवां.
तथा (सेस के० ) शेष रह्यां जे (गुलतीस के० ) नगरात्रीश पद त ( आवस्सियाई के० )