Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 312
________________ ३१५ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. (तथा ) तेवी रीते (नाथ ) हे नाथ! ( सानु शयः) पश्चात्तापे करो सहित एवो हुं (तव) तमारी (अग्रे) आगल (निजाशयं) मारा-पो ताना अन्तिप्रायने (यथार्थ ) सत्य रीते (कथ यामि) कहुं बुं ॥३॥ दत्तं न दानं परिशीलितं च,न शालि शीलं न तपोऽजितप्तम् । शुजो न जावो ऽप्यनवनवेऽस्मिन्, विनो मया ब्रांतमहो मुधैव ॥४॥ अर्थः-(विनो) हे प्रनु ? (मया) में (दान) दान (न दत्तं) दी@ नथी. (च) वली (शालि) सुंदर एवं (शीलं) शीयल व्रत (न परिशीलितं) पाल्युं नथी. वली (तपः) तप (न तप्तं ) तप्यु (कर्यु ) नश्री. वली (शुन्नः) शुन्न एवो (ना वः)नाव (अपि) पण (न अन्नवत् ) थयो नथी. (अहो) अहो ! (अस्मिन् )आ (नवे ) संसारमा (मुधैव) फोमटज (ब्रांतं) मारावके जमायुं ले-हुं लम्यो बुं ॥४॥

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