Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 311
________________ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. ३११ अर्थः-(जगत्त्रयाधार) त्रण जगतना आधा रन्नूत एबा वली (कृपावतार) कृपाने माटे अवतार एटले जन्म जेनो एवा वली (उर्वारसं सारविकारवैद्य) दुःखे करी वारी शकाय एवा संसारना विकारनो नाश करवामां वैद्य समान वली (विज्ञ) विशेष ज्ञानवंत एवा (श्रीवीतरा गप्रनो) हे वीतराग प्रन्नु ? (त्वयि ) तमारे विषे (मुग्धन्नावात् ) मुग्धपणा थकी (किंचित् ) कांईक (विज्ञपयामि) हुं विनंति करुंडु ॥२॥ किं बाललीलाकलितो न बालः, पि त्रोः पुरो जस्पात निर्विकल्पः । तथा य थार्थं कथयामि नाथ, निजाशयं सानुशय स्तवाग्रे ॥३॥ अर्थः-(बाललीलाकलितः) बालकनी की माए करीने युक्त अने (निर्विकल्पः) विकल्प रहित एवो (बालः) बालक (पित्रोः) मा बा पनी (पुरः) पासे सत्य वचनने (किं) शुं ? (न जब्पति) नत्री बोलतो अर्थात् बोले रे न.

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332