Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 326
________________ ३२६ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. सद्बोधिरत्नं शिवश्रीरत्नाकर मंगलैकनिल य श्रेयस्करं प्रार्थये ॥२५॥ अर्थः-(जिनेश्वर ) हे जिनेश्वर ! (त्वदप रः) तमाराथी बीजो कोश ( दीनोक्षार धुरंधरः) दीन लोकनो नक्षर करवामां धुरंधर ( नास्ते) नथी, अने (मदन्यः) माराधी बीजो कोई (पत्र)आ (जने) लोकमां (कृपापात्रं )क पार्नु पात्र (न) नथी, (तथापि ) तो पण ( एतां) श्रा-प्रत्यद (श्रियं) लक्ष्मी -धनने (न याचे) हुं मागतो नश्री. (किं तु ) परंतु (शिवश्री रत्नाकर) मोद लक्ष्मीना सागर स मान अने (मंगलैकनिलय) मंगलना अहितीय स्थान रूप एवा (अहो अर्हन्) हे अर्हन देव! (के वलं) फकत (इदं) आ (श्रेयस्करं) कल्याणकारी (सब्दोधिरत्नं) सारा बोधि-रत्न सम्यक्त्वनी (एव)ज (प्रार्थये) हुं प्रार्थना करूं. आश्लो कमां " श्री रत्नाकर" शब्दवमे स्तुति कर्ताए पोतानुं "रत्नाकर सूरि" एवं नाम पण सूचव्युंडे. ॥ इति श्रीरत्नाकरपंचविंशिका समाप्ता ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 324 325 326 327 328 329 330 331 332