Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 320
________________ ३० श्री रत्नाकरपंचविंशिका. आयुर्गलत्याशु न पापबुधिर्गतं वयो नो विषयानिलाषः । यत्नश्च नैषज्यविधौ न धर्मे, स्वामिन्महामोह विमंबना मे॥१६॥ ___ अर्थः-(मे) मारूं (आयुः) आयुष्य (आशु) शीघ्रताथो (गलति) जाय , पण (पापबुद्धिः) पापनी बुद्धि (न) जती नथी. वली (वयः) वय (गतं) गयु, पण (विषयानिलाषः) विष योनी इबा (न) गई नहीं. (च) वली (नैष ज्यविधौ) औषधनी विधिमां (यत्नः) यत्न कर्यो, पण (धर्मे) धर्ममां (न) यत्न कर्यो नहीं, ते सर्व (स्वामिन् ) हे स्वामिन् ! (महामोहविर्स बना) मोटा मोहनी विटंबना . ॥ १६ ॥ नात्मा न पुण्यं न जवो न पापं, मया विटानां कटुगीरपीयम् । अधारि कर्णे त्वयि केवलार्के, परिस्फुटे सत्यपि देव घिाम ।। १७ ॥ अर्थः-- ( देव ) हे देव! ( केवलार्के ) केवल ज्ञान रूपी सूर्य समान ( त्वयि ) तमे ( परि

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