Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 314
________________ ३१४ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. में (अमुत्र) परलोकने विषे (च) तथा (इह) आ (लोकेऽपि ) लोकने विषे पण ( हितं)हि तकारी कार्य (न कृतं) कयु नथी तेथी (मे) मने (सुखं) सुख (न अन्नत् ) न थयुं तो (जिनेश) हे जिनेश ? (अस्मादृशां) अ मारा जेवानो (जन्म) जन्म (केवलं) केवळ (नवपूरणाय एव) नवोने पूरण करवा माटे ज (जझे) थयो . ॥६॥ ___ मन्ये मनो यन्न मनोज्ञ वृत्त, त्वदास्य पीयूषमयूखलानात् । पुतं महानंदरसं क गोर, मस्मादृशां देव तदश्मतोऽपि ॥ ७॥ ___ अर्थः-(मनोज्ञवृत्त) सुंदर ले आचरण जेनुं एवा (देव) दे देव ? ( यत् ) जे कारण माटे (अस्मादृशां) अमारा जेवार्नु (मनः) मन ( त्वदास्यपीयूषमयूखलानात् ) तमारा मुख रूपी चंना लानश्री (महानंदरसं) मोटा आ नंदना रसने (न तं) ब्युं नहीं (तत्) ते कारण माटे अमाझं मन (अश्मतोऽपि ) परथी पण (कगेरं) कगेर ने एम (मन्ये) हुं मानुं बु.॥७॥

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