Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 317
________________ श्री रत्नाकरपंचविंशिका. ३१७ ला एवा में ( स्मरघस्मशर्तिर्दशावशात् ) काम देव रुपी नककनी पीमानी दशाना वशश्री ( यत् ) जे (स्व ) मारा आत्माने ( विझबित) विमंबना पमामी ( तत् ) ते (वन्नतः) आपनी पासे (हिया एव) लाथी ज (प्रकाशितं ) में प्रकाश कयु जे. केमके ( सर्वज्ञ ) हे सर्वज्ञ! ( स्वयमेव ) तमे पोते ज (सर्व) सर्व (वेत्सि) जागो गे. ॥११॥ ध्वस्तोऽन्यमंत्रैः परमेष्ठिमंत्रः, कुशास्त्र वाक्यैर्निहतागमोक्तिः । कर्तुं तथा कर्म कुदेवसंगादवांटि हि नाथ मति व्रमो मे ।। १३ ।। अर्थः-में (अन्यमंत्रैः) बीजा मंत्रोए करीने (परमेष्ठिमंत्रः) परमेष्ठि मंत्र ( ध्वस्तः) नाश पमामयो (कुशास्त्र वाक्यैः) कुशास्त्रनां वाक्योये करीने (आगमोक्तिः) आगमनां वचनो (निद ता) हणी नांख्यां अर्थात् न सांनळ्या अने (कुदेवसंगात् ) कुदेवना संगथी (कर्म) कर्मने

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