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२०० पञ्चरकाल प्राप्य अर्थसदित. कुलाचारने ( न लुप्पइ ) न लोपीये. तो ( कु विन) कोप पामेलो एवो ( कलिकालो) कली काल ( किं ) शुं ( कुइ ) करे - करी शके ? ५
मम्मं न न लविइ कस्स विप्रालं न दिइ कया वि ॥ को विन नक्कोसि ऊ सऊणमग्गो इमो डुग्गो ॥ ६ ॥
अर्थ:- कोईने (न) वली (मम्मं ) मर्म व चन ( न लविङ ) न कहीये. ( कस्स वि कोईने ( कया वि) कदापि (आलं) कलंक ( न दिइ ) न दईये ( को वि) कोईने ( न न क्को सिकइ ) श्राक्रोश न करीये. ( इमो ) ( समग्गो ) सऊननो मार्ग ( डुग्गो) दुर्गकिल्ला समान वे अर्थात् ते कोईथी पराभव पा मे नहीं ॥ ६ ॥
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सबस्स नवयरिइ न पम्हसिक पर स्स नवारो । विहलं अवलंबिऊ नव एसो ए स विनसाणं ॥ ७ ॥
अर्थ:- (सहस्स) सर्वने ( नवयरिज्जइ ) नप