Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 303
________________ पञ्चकाण नाष्य अर्थसहित. ३०३ न कुसंगेण वसिज्ज बालस्स वि घिप्पए हिनं वयणं ॥ अनयान निवाहि ज्ज न हो वणिज्जया एवं ॥ १५ ॥ ___ अर्थः-(कुसंगण) कुसंगीनी साथे (न व सिज्ज) न वसीये. (बालस्स वि) बालकथकी पण (दिअं) हितकारी (वयणं) वचन (घि प्पए) ग्रहण करीये. (अनयान) अन्यायथी (निवहिज्जइ) निवर्तन पामीये. (एवं) एम करवाथी (वयणिज्जा) वचनीयता एटले निंदा (न हो) न होय ॥१५॥ , विहवे वि न मचिज्ज न विसीइ ज्ज असंपयाए वि ॥ वहिज्ज समन्नावे न हो रणरण संतावो ॥१६॥ अर्थः-(विदवे वि) वैनवने विषे पण ( न मञ्चिज्जइ) न माचोये-न गर्व करीये. (असंप याए कि) संपत्ति रहित पणामां पण (न वि सीइन्जइ) विषाद-खेद न करीये. (समन्नावे) समताने विषे (वहिज्जइ) वर्तीये. तो ( स्पर

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