Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 304
________________ ३०४ पञ्चस्काण नाष्यअर्थसहित, ण) सारा माग योगमां (संतावो) संताप (न होइ) न होय ॥ १६ ॥ वन्निज्जर निच्चगुणो न परुळं न य सुअस्स पञ्चकं ॥ महिला न नोजया वि हु न नस्सए जेण माहप्पं ॥१७॥ - अर्थः-(लिञ्चगुणो)नृत्य चाकरना गुण (प रुरकं) परोक्षपणे (न वनिज्ज) न वखाणोये. (य) वली (सुअस्स) पुत्रना गुण (पञ्चकं) प्रत्यक्षपणे (न) न वखाणीये (न) परंतु (म हिला) स्त्रीना गुण (नन्नया वि) बन्ने प्रकारे पण-परोक्ष के प्रत्यक्षपणे पण (न) वखागीये (हु) निश्चे (जेण) जेथी (माहप्पं ) पोतार्नु माहात्म्य-मोटाईपणुं (न नस्स३) नाशन पामे. ___जंपिज्ज पिअवयणं किज्ज ।वण न अदिज्जए दाणं ॥ परगुणगहणं कि ज्जइ अमूलमंतं वसीकरणं ॥ १७ ॥ अर्थः-(पिअवयणं ) प्रिय वचन (जंपि ज्जई) बोलीये. (विन) विनय करीये. (दा

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