Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown
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३६ श्री उपदेशरत्नकोष. ___ अर्थः-( मंतंताण ) मंत्र तथा तंत्रने (न पासे ) न जोए (अबीयेहिं ) बीजा विना-ए कला (परग्गहे ) पर घर (नई गम्म) नज ईए. ( पमिवनं ) प्रतिपन्न-अंगीकार करेलु (पा लिऊइ ) पालीये. (एवं) एम करवाथी (सुकुली पत्त) सारं कुलीनपणुं ( हवा ) पायजे ॥३॥
लुंजय मुंजा विऊ पुनिऊ मणोगयं कहिज्ज सयं ॥ दिङ लिऊ नचिअं शबिज्जइ जइ थिरं पिम्मं ॥२१॥ ___ अर्थः-( जइ) जो ( श्रिरं) स्थिर एवा (पिम्मं ) प्रेमने (इबिऊइ) इचिए तो मित्रने घेर (मुंजइ) नोजन करीये. (मुंजाविऊर) तेने नोजन करावीये (मणोगयं) मनमा रहेलो विचार (पुहिज्ज) पूीये अने (सयं) आपणे पोते (कहिऊ) कहीये (नचिअं) योग्य वस्तु (दि ऊर.) दईए अने (लिऊइ) लईये. ॥१॥
को विन अवमन्निऊ न य गधि अइ गुणेहिं निअएहिं । न विम्हन वहि

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