Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Unknown

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Page 305
________________ श्री उपदेशरत्नकोषः ३०५ M) दान ( दिज्जए) दईए. (अ) वली (पर गुणगहणं ) परना गुणनुं ग्रहण (किज्ज)क रीये. ए (अमूलमंतं) अमूल्य मंत्र (वसीकरणं) वशीकरणनो ॥ १७ ॥ पहावे जंपिज्जइ सम्माणिऊइ खलो वि बहुमज्झे ॥ नऊ सपर विसेसो सयल छा तस्स सिझंति ॥ १५॥ ___ अर्थः-(पहावे ) प्रस्तावे-योग्य समये (जं पिज्जइ) बोलीये. ( बहुमज्झे) घणा माणसोनी मध्ये (खलो वि) खल माणस, पण ( संमा पिज्ज) सन्मान करीये. (सपरविसेसो) पो तानो अने परनो विशेष-नेद (नऊ) जाणी ये. तो (तस्स ) ते माणसने ( सयलचा ) स कल अर्थो (सिझंति ) सिद्ध थाय ॥१॥ मंतंताण न पासे गम्मइ नइ परग्गहे अबीएहिं ॥ पमिवन्नं पालिज्ज सुकुली णत्तं हवइ एवं ॥२०॥ २०

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