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२३६ पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. दाद, ग्रहादिक, रजोवृष्टि, पर्वत प्रमुख सर्व जा णी लेवू. तिहां पर्वत अने वादला प्रमुखे अंत रिद, सूर्य देखाय नहीं, अथवा रज नमवे करी न देखाय,तेवारे पोरिसीयादिकना कालनी खबर न परतां अपूर्ण थयलीने संपूर्ण श्रयेली जाणीने, जमवा बेसी जाय तो पचरूखाण नंग न थाय. परंतु जागवामां आवे तो पनी अझै जम्यो थ को होय तो पण एमज बेशी रहे, अने पोरिसी आदि पूर्ण थाय, पडी जमे तो नंग न थाय, प रंतु हजी पूर्ण थ नश्री, एवं जागवामां आवे तो पण अटके नहीं, अने जमे तो पञ्चख्खाण नंग थइ जाय ॥
चोथो (दिसिमोहो के) दिसामोहेणं ते (दि सिविवासु के० ) दिशिना विपर्यासपणाथकी जेवारे दिङ्मूढ य जाय, तेवारे पूर्वने पश्चिम करी जाणे अने पश्चिमने पूर्व करी जाणे एम खबर न पम्वाथी अपूर्ण पञ्चख्खाणे पण पूर्ण काल यो जागीने जमे तो पचरुखाणनंग नहीं, अने दिमोह मटी गया पठी जेवारे जाणवामां