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७० पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. पहोंचामे. ते (विगई के) विगइ केदेवी ने ? तो के (विगइसहावा के०.) विकृति स्वन्नाव, एटले विकार नपजाववानो ने स्वन्नाव जेने एवीजे. केम के ए विकृत ते अवश्य शब्दादिक कामनोग ने वधारे एवी . माटे कारण विना विगयादिक न लेवां, अने श्रावकने पण निवी प्रमुखने पञ्चरकाणे को महोटा कारण विना तथा विशेष तप विना नीवियाता लेबा कल्पे नहि, एनो विस्तार श्रीमा वश्यकनियुक्तिनी वृत्तिथी तथा प्रवचनसारोशर नीवृत्तित्रादिक ग्रंथथी जाणवो. आंही संकेप मात्र लख्यो रे ॥ ४ ॥ हवे चार अन्नदय विगय ,तेना नत्तरनेद कहे .
कुत्तिय मच्चिय नामर,महु तिहा कह पिठ मद्य उहा ॥ जलथल खग मंस तिहा, घय व मस्कण चन अजका ॥४१॥ दारं ॥६॥ ___ अर्थः-तिहां प्रश्रम मधु विगयना नेद कहे
. एक (कुत्तिय के०) कुत्तां बगतरां जंगल मध्ये श्राय . तथा वर्षाकाले विशेष थाय ,