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२०४ पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. के०) नणे, एटले कहे; ए प्रथम विधि जाणवो. (पुण के०) वली (सीसो के०) शिष्य जे प च्चख्खापनो करनार होय ते (पच्चख्खामि के) पच्चख्खामि (इति के०) एम कहे. ए बीजो विधि जावो. अने (एव के०) एम संपूर्ण पच्चख्खाणे गुरु ( वोसिरई के) वो सिरई कहे. ए त्रीजो विधि जाणवो अने शिष्य जेपच्चरूखाणनो करनार होय ते वोसिरामि कहे, ए चोयो विधि जावो. ए चार विधि कह्या.
(श्व के) इहां पच्चख्खाणने विषे करतां तथा करावतां श्रका पोताना मननो जे (नवग के० ) नपयोग एटले मननी धारणा ने तेज (प माणं के०) प्रमाण ने एटले मनमांहे जे पच्च रूखाग धारयुं होय तेज प्रमाण . परंतु (वंजण के) अक्षर तेनी (बलणा के ) उलना ने एट ले स्खलना जे. अर्थात् अनानोगने लीधे धारेला तिविहार पञ्च काणथी बीजो को चनविहार प चख्खागनोज पाठ नचरीये, ते वंजण उलना जा गवी ते (न पमाणं के ) प्रमाण नथी ॥५॥