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१६४ गुरुवंदन जाय अर्थसहित.
करीयें (अदवा के० ) अथवा (सरकं के०) साक्षात् पूर्वोक्त गुरायुक्त एवा ( गुरु नावे के० ) गुरुनो प्रभाव बते ( तब के० ) तत्र एटले ते गुरुने स्था नर्के (रकाई के० ) अक्षादिक स्थापीने तेनी श्रागल क्रिया करीयें ते अक्षादिक स्थापनाचार्य न होय तो ( नाणाइतियं के० ) ज्ञानादिक त्रल एटले एक ज्ञान, बीजुं दर्शन, त्रीजुं चारित्र, ए
ना नपकरण जे पोथी नोकरवाली प्रमुख बे तेने (विक के० ) स्थापीने तेनी आगल क्रिया करीयें. परंतु गुरुने विषे गुरुबुद्धि प्राणीने तेनी आागल क्रिया करवी नहीं. केमकं श्रागममां प्रगु रुने विषे जे गुरुबुद्धि प्राणवी तेने अत्यंत आकरुं लोकोत्तर मिथ्यात्व कां रे ॥ २८ ॥
दवे प्रज्ञादिक जे क्या ते कहे बे. एक (अरके के० ) अक्ष ते चंदन प्रसिद्ध मालानी स्थापना जालवी, तेना जावे (वरामए के०) वराटके एटले त्रण लींटीना कोमानी स्थापना करवी, (वा के० ) श्रथवा (कठे के०) काष्ट मांगा मांगी प्रमुख चंदना दिकनी पाटी आदिकनी स्थापना करवी, (पुचे के०)