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गुरुवंदन जाय अर्थसहित.
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दाथ लगातां कड़े, जेम " जत्ता ने वसि " " ऊं च ने " एवा त्रण प्रावर्त्तं त्रण त्रण करना कहेतो खामेमि खमासमलो कही बीजी वार मस्तक नमामे. ए रीतें ए प्रथम वां द वर्त्तयां तेम वली बीजे वांदले पण एज रीते व आवर्त्त थाय, बे वार मली बार श्र वर्च रूप बार आवश्यक थाय. सर्व मली पंदर थयां. तथा (चन सिर के ) चतुः शिरः एटले चार वार शिर नमामधुं तिदी पहेले वांदणे बे वार मस्तक नमाम ने बीजे वांदले पण बे वार म स्तक नमामवुं मली चार वार शिर नमन थाय. एवं नगलीश आवश्यक थयां.
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तथा ( तिगुत्तं के० ) त्रण गुप्ति ते मन, व चन ने काया एत्रणने अन्यव्यापारथी गोपवी राखे ए ने व्यथी तथा नावथी प्रयत्नायें न प्रवर्त्तावे, एवं बावीश आवश्यक थयां.
तथा (पवेस के ) प्रवेश एटले बे वार श्रावश्यकें वे वार गुरुनी श्राज्ञा मागी अवग्रह मां प्रवेश करवा रूप बे आवश्यक अने ( इग