Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2 Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ अन्तस्तोष अन्ततोष अनिर्वचनीय होता है, उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिञ्चित द्रुम- निकुञ्ज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगें । संकल्प फलवान बना। मुझे केन्द्र मानकर मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया और कार्य को निष्ठा तक पहुंचाने में पूर्ण श्रम किया। कुछ वर्ष पूर्व मेरे मन में कल्पना उठी कि 'जैन आगम विषय कोश' तैयार किया जाए। सभी आगमों का एक विषय कोश अभीष्ट था। परन्तु वह दीर्घ समय सापेक्ष था । अतः उस कार्य को अनेक खंडों में विभक्त कर दिया गया, जिसकी फलश्रुति प्रस्तुत खंड है । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं सबको समभागी बानना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है प्रधान संपादक निर्देशन संपादिका Jain Education International 0: : : : संकलन सहयोगी : आचार्य महाप्रज्ञ आगम मनीषी मुनि दुलहराज साध्वी विमलप्रज्ञा साध्वी सिद्धप्रज्ञा साध्वी दर्शनविभा समणी उज्ज्वल प्रज्ञा : संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिन ने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूं कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । For Private & Personal Use Only गणाधिपति तुलसी आचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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