Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Devsen Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Hiralal Maneklal Gandhi Solapur

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Page 9
________________ आचार्य श्री देवसेन का परिचय हों और जिनके समान विहार करे वे मुनि जिनकल्पी कहलाले है । जो मुनि पांचो प्रकार के वस्त्रों के त्यागी हो जिनके पास कोई परिग्रह न हो, पीछी हो, जो पांचों महाव्रतों के धारी हों खड़े होकर दिन में एक बार करपात्र भोजन करते हो, दोनों प्रकार के तपश्चरण में उद्यमी हों सहा छहों आवश्यकों का पालन करते हो लोच करते हो पृथ्वी पर शयन करते हो इस प्रकार अट्ठाईस मूल गुणों का पालन करते हों । जो हीन संहनन के कारण इस दुःषम काल में पुर नगर वा गांव मे (मन्दिर वा मठ आदि में) रहते हो उनको स्थविरकल्पी कहते है । जिनसे रत्नत्रय का भंग न हो ऐसे उपकरण रखते है अपने योग्य किसी के द्वारा दी हुई पुस्तक रखते है समुदाय से बिहार करते है भव्यों को धर्म श्रवण कराते हे शिष्यों को दीक्षा देते है और उनकी स्थिति का पालन करते हैं इस दुःष म काल मे हीन संहनन होने पर भी धीर पुरुष महावत धारण करते है यह आश्चर्य है। पहल के उत्तम संहनन से जो कर्म हजारों वर्षों में नष्ट होते थे वे कर्म इस समय हीन संहनन के द्वारा एक वर्ष मे नष्ट हो जाते है । ___ इस उपयुंक्त कथन से सिद्ध है कि आज कल के मुनिगण स्थविर कल्पी मुनि है वे हिंसक जंतुओं से भरे हुए जंगलों में रहकर निर्विघ्न धर्म ध्यान करने में सर्वथा असमर्थ है इसलिये वे नगरों मे, उद्यानों में मन्दिरों में, मठों, बगीचों आदि मे रहते है। यह वर्तमान शक्ति हीन सहनन के लिय समुचित शास्त्र मार्ग है । जो लोग बर्तमान मुनियों पर नाना आक्षेप करते है उन्हे इन महान पूर्वाचार्यों के शास्त्र विधानों से अपना समाधान कर वर्तमान मनियों में उसी प्रकार श्रद्धाभक्ति से देखना चाहिये जैसी कि चतुर्य कालवर्ती मुनगें पर रहती है । शारीर सामर्थ्य को छोडकर बाकी चर्या और भावों की विशुद्धी वर्तमान मुनियों म भी प्राच्य काल के समान ही रहती है। इन दिगम्बर वीतराग महर्षि आचार्य देवसेन गणी का संक्षिप्त परिचय भाई नाथराम जी प्रेमी के द्वारा लिखा हुआ माणिकचन्द ग्रंथमाला के मुदित नय नयचक्र संग्रह के प्राक्कथन का उद्धरण देते हुए. हमने लिखा है।

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