Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Devsen Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Hiralal Maneklal Gandhi Solapur

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Page 8
________________ आचार्य श्री देवसेन का परिचय एयारसंग धारी एआइ धम्म सुक्क मणीय । यत्ता सेस कसाथ मोगबई कंदरा वाली ॥ १२२ ।। वाहिरतर मंथ बहा धिणेहा णिपिहा व जइवइगो। जिण इब विहरति सया ते जीण कप्पट्टिया समणा ।। १२३ ।। थविरकप्पोवि कहिओ अणयाराणं जिणेण सो एसो । पंचच्चेलचाओ अकितणतं च पडिलिहणं ।। १२४ ।। पंच महन्वय धणं ठिदिभोयण एयभत्त करपत्तो । भत्ति भरेण य दत्तं काले य अजायणे भिक्खं ।। १२५ ।। दुविह तवे उज्जमणं छन्ति आवासाहि अणवरयं । खिविसयथं सिर लाओ जिणवर पडिरुव पडिगणं ।। १२६ ।। संहणणस्स गुण य दुष्सम कालप्स तव पहावेण । पुरणयराम वासी थविरे करपे ठिया जाया ।। १२७ ।। उवयरणं तं गहिसं जेण ण भंगो हवे चरियप्स । गल्हियं पुत्थ य दाणं जोम्म जस्स तं तेण ।। १२८ ।। समुदाएण विहारो धम्मस पदावणं ससत्तीए। भवियाण धम्मसवर्ण लिस्साण य पालनं गहणं ॥ १२९ ।। संहणणं अइणिन्ध कालो सो दुक्समो मणो अवलो । तहवि दुधारी पुरिसा महत्वष भरधरण उच्छहिया ॥ १३० ।। बरससहस्सेण पुरा जं कम्मं हाइ तेण कारण | ते संपइ यरिसेग हु णिज्जरयइणि संहणणे ।। १३१॥ भावार्थ- मुनि दो प्रकार के होते है जिनकल्पी और स्थविरकल्पी जो उत्तम सेहनन को धारण करने वाले है, जिनके पैर में कांटा लग जाय वा आंखों मे धूल भर जाय तो स्वयं नहीं निकालते दूसरा निकाले तो मौन धारण करले । जो वर्षा आदि ऋतु मे ६ महिने तक बिना आहार लिये बैठे वा खडे रहे । जो ग्यारह अंग के पाठी हो धर्म वा शुक्ल ध्यान में लीन रहते हों जिनकी कषायें नष्ट हो गई हो, मौनव्रती हो, कंदरावासी हो, बाह्याभ्यंतर परिग्रह से रहित हो, वीतराग निस्पृह

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