Book Title: Bhav Sangrah Author(s): Devsen Acharya, Lalaram Shastri Publisher: Hiralal Maneklal Gandhi Solapur View full book textPage 6
________________ आचार्य श्री देवसेन का परिचय सिवा उन्होंने आलाप पद्धति, दर्शनसार आराधनासार, तत्वसार, नयचक्र आदि सिद्धांत के महान ग्रंथों की रचना की है। श्लोक वार्तिक मे आचार्य विद्यानन्द ने जिन नयों का वर्णन किया है वह वर्णन पुरातन नयचक्र से मिलता है जिसके नष्ट होने पर आचार्य देव 'न ने लघु नयचक्र रचा है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है। इस से यह भी सिद्ध होता है कि आचार्य देवसेन आचार्य विद्यानन्दि के पश्चात हुए प्रतिल होते है । इन आचार्य देवसेन की भगवत्कुंद कुंद आचार्य में दृढ श्रद्धा थो इस बात का उल्लेख उन्होंने दर्शनसार में किया है। इन्होंने मालवा प्रान्त को अपने विहार से बहुत काल तक पवित्र किया था। वर्तमान मुनियों के विषय में स्पष्टीकरण आजकल दक्षिण उत्तर में अनेक मुनिगण नग्न, दिगम्बर जैन साध सर्वत्र विहार कर रहे है । यह समाज धर्म और देश के लिये कल्याण की बात है । दिगम्बर जैन शास्त्रों मे उत्कृष्ट एवं तद्भव मोक्षगामिता की शक्ती रखने वाले तपस्वी साधुओं का स्वरुप और उनकी अचिन्त्य कठीन चर्या का वर्णन पढ कर अनेक स्वाध्याय शील बन्धु कहने लगते है कि जो गरमी मे पहाडों पर माध्यमिक समय तपश्चरण करे शीत ऋतु मे जो नदियों के किनारे पर ध्यान लगाये बैठे हो वर्षा में जो वृक्षों के नीचे टपकते हुए पानी मे बाहे लुभायें खड़े हों और जो सिंह व्याघ्र भाल आदि हिंसक जानवरों से भरे हुए जंगलों मे रहते हों वे ही साध हो सकते है | आजकल नगरों में मन्दिरों मठों और धर्मशाला आदि में रहने वाले साधु, मुनि नहीं कहलाने योग्य है, आदि आक्षेपों और दुर्भा बनाओं से अनेक लोग वर्तमान साधुओ को साधु ही नहीं समझते है । इस विषय मे आचार्य सोमदेव आचार्य कुंद कुंद आदि महान आचार्यों स्वरचित शास्त्रों में बहुत अच्छा समाधान किया है. उन्होंने लिखा है काले कलौ चले चिले देहे चाशावि कीटके । एतच्चित्रं यदद्यापि जिनरूपधरा नराः ।। C अर्थाथ आज के इस पतनशील कलिकाल मे और चित्त की क्षण क्षण में बदलने वाली चंचलता मे साथ ही शरीर के अक्ष का कीडा बनPage Navigation
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