Book Title: Bharatesh Vaibhav
Author(s): Ratnakar Varni
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 18
________________ भरतेश वैभव सोलहवाँ मनु, प्रथमचक्रवर्ती, स्त्रियोंके लिये कामदेव, विवेकियोंके चुडामणि एवं तद्भवमोक्षगामी भरतका वर्णन करने में मैं कहाँ ममर्थ हूँ? .. जो यथार्थ में गुण नहीं हैं ऐसे गुणोंका वर्णन करनेकी पद्धति टीक नहीं है। परन्तु जो गुण उस भरत महाराजमें हैं उनका भी पूर्णरूपसे वर्णन करने में कौन समर्थ है ? बहुत कहनेसे क्या लाभ ? उस क्षत्रिय कुलरलको आहार तो है किन्तु नीहार-मलमूत्र नहीं है। क्या वह अलौकिक पुरुष नहीं है ? लोकम सभी पदार्थोके जलानेपर उनका भस्म तैयार होता है । किन्तु कपूरको जलानेपर कहीं भस्म होता है क्या ? नहीं, संसारके सभी मनुष्योंमें आहार-नोहार पाए जाते हैं। किन्तु हमारे भरतमें आहार तो है नीहार नहीं है। वह चक्रवर्ती भरत कोमल शरीरवाला है। सुवर्ण सदृश उसका वर्ण है । अपने रूपसे दुनियाभरको मोहित करनेवाला सुन्दर रूपधारी है । इतना ही नहीं, अभी वह तरुण है । ___वह सम्राट् भरत एक दिन प्रातःकाल देवपूजादि नित्यनियासे नित्र त हो राजसमें विराजमान है। नवरत्न निर्मित उस आस्थानभवनमें भरत रत्ननिर्मित पुष्पक विमानमें विराजमान देवेन्द्र के समान शोभायमान हो रहा था। मानस-सरोवरमें कमलके ऊपर जिस प्रकार राजहंस शोभता है उसी प्रकार शरीरकांतिसे परिपूर्ण उस राजसभारूपी सरोवरमें रत्न सिंहासनरूपी कमलके ऊपर बह राजहंस भरत शोभायमान हो रहा था । ___ क्या यह चक्रवर्ती है ? अथवा उदयगिरिके शिखरपर उदित होनेवाले मुर्षका सामना करनेवाला कोई प्रतिद्वन्द्वी सूर्य तो नहीं है ? उसका शरीर कितना सुगन्धयुक्त है ? किरीट कितना सतेज है ? भव्यतिलक उसके भालपर कितना चमक रहा है ? की वीरदृष्टिसे वह देख रहा है। दूसरे लोग आठ-दम बार बोलते हैं तो वह एक बार उत्तर देता है। उसकी बात सुननेकी प्रतीक्षा लोगों को करनी पड़ती है। यह उसकी गम्भीरता है। लीक है, गम्भीरता सर्वगुणों में श्रेष्ठ है। राजा हो, चाहे राजभोगी हो, परन्तु उसे गांभीर्यगुणकी आवश्यकता है। और गम्भीरता नष्ट हो जाय तो फिर क्या है ।

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