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भगवती सूत्र-श. १३ न. २ देवावासों की मंग्या विस्तागदि
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गमगा भाणियव्वा, णवरं एगा तेउलेस्सा । उववजंतेसु पण्णत्तेसु य असण्णी णत्थि, सेसं तं चेव ।
___ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्योतिषी देवों के कितने लाख विमानावास कहे गये हैं ?
८ उत्तर-हे गौतम ! ज्योतिषी देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! वे विमानावास संख्येय विस्तृत हैं या असंख्येय विस्तृत ?
उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार वाणव्यन्तर देवों के विषय में कहा, उसी प्रकार ज्योतिषी देवों के विषय में भी तीन आलापक कहने चाहिये । इसमें इतनी विशेषता है कि ज्योतिषियों में केवल एक तेजोलेश्या ही होती है। उत्पाद, उद्वर्तना और सत्ता में असंज्ञी नहीं होते । शेष सभी वर्णन पूर्ववत् है ।
विवेचन-ज्योतिपी देवों में विमानावास संख्येय विस्तृत ही होते हैं । उनके विमान एक योजन से भी कम विस्तृत होते हैं । इनमें एक तेजोलेश्या ही होती है । ज्योतिषी देवों में अमंज्ञी जीव न तो उत्पन्न होते हैं और न सत्ता में होते हैं। किन्तु वहाँ से चव कर असंजी (पृथ्वीकाय आदि) में उत्पन्न होते हैं । इसलिए चवते हैं, ऐसा कहना चाहिये ।
९ प्रश्न-सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससय. सहस्सा पण्णत्ता ?
९ उत्तर-गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । प्रश्न-ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेज्जवित्थडा ? उत्तर-गोयमा ! संखेज्जवित्थडा वि असंखेजवित्थडा वि। . १० प्रश्न सोहम्मे गं भंते ! कप्पे बत्तीसाए विमाणावास.
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