SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. १३ न. २ देवावासों की मंग्या विस्तागदि २१६५ गमगा भाणियव्वा, णवरं एगा तेउलेस्सा । उववजंतेसु पण्णत्तेसु य असण्णी णत्थि, सेसं तं चेव । ___ भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्योतिषी देवों के कितने लाख विमानावास कहे गये हैं ? ८ उत्तर-हे गौतम ! ज्योतिषी देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! वे विमानावास संख्येय विस्तृत हैं या असंख्येय विस्तृत ? उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार वाणव्यन्तर देवों के विषय में कहा, उसी प्रकार ज्योतिषी देवों के विषय में भी तीन आलापक कहने चाहिये । इसमें इतनी विशेषता है कि ज्योतिषियों में केवल एक तेजोलेश्या ही होती है। उत्पाद, उद्वर्तना और सत्ता में असंज्ञी नहीं होते । शेष सभी वर्णन पूर्ववत् है । विवेचन-ज्योतिपी देवों में विमानावास संख्येय विस्तृत ही होते हैं । उनके विमान एक योजन से भी कम विस्तृत होते हैं । इनमें एक तेजोलेश्या ही होती है । ज्योतिषी देवों में अमंज्ञी जीव न तो उत्पन्न होते हैं और न सत्ता में होते हैं। किन्तु वहाँ से चव कर असंजी (पृथ्वीकाय आदि) में उत्पन्न होते हैं । इसलिए चवते हैं, ऐसा कहना चाहिये । ९ प्रश्न-सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससय. सहस्सा पण्णत्ता ? ९ उत्तर-गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । प्रश्न-ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेज्जवित्थडा ? उत्तर-गोयमा ! संखेज्जवित्थडा वि असंखेजवित्थडा वि। . १० प्रश्न सोहम्मे गं भंते ! कप्पे बत्तीसाए विमाणावास. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy