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________________ भगवती सूत्र - श. १३. उ. २ देवावानों की संख्या विस्तारादि भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों के कितने लाख आवास कहे गये हैं ? - २१६४ गये हैं ? ६ उत्तर - हे गौतम वाणव्यन्तर देवों के असंख्यात लाख आवास कहे प्रश्न न - हे भगवन् ! वे आवास संख्येय विस्तृत हैं या असंख्येय विस्तृत ?' उत्तर - हे गौतम! वे संख्येय विस्तृत हैं, असंख्येय विस्तृत नहीं । ७ प्रश्न - हे भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों के संख्येय विस्तृत आवासों में एक समय में कितने वाणव्यन्तर देव उत्पन्न होते हैं ? ७ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार असुरकुमार देवों के संख्येय विस्तृत आवासों के विषय में तीन आलापक कहे, उसी प्रकार वाणव्यन्तर देवों के विषय में भी तीन आलापक कहने चाहिये । विवेचन - वाणव्यन्तर देवों के आवास संख्यात योजन विस्तार वाले ही होते हैं, असंख्यात योजन विस्तार वाले नहीं । उनका परिमाण इस प्रकार है जंबूद्दीवसमा खलु उक्कोसेणं हवंति ते नगरा । खुड्डा खेत्तसमा खलु विदेहसमगा उ मज्झिमगा ॥ - वाणव्यन्तर देवों के सब से छोटे नगर (आवास) भरतक्षेत्र के समान होते हैं, मध्यम महाविदेह के समान होते हैं और सबसे बड़े आवास जम्बूद्वीप के समान होते हैं । ८ प्रश्न - केवइया णं भंते ! जोइसियविमाणावाससय सहस्सा पण्णत्ता ? ८ उत्तर - गोयमा ! असंखेज्जा जोइसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । प्रश्न- ते णं भंते! किं संखेज्जवित्थडा० १ Jain Education International उत्तर - एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाणं वि तिष्णि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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