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________________ भगवती सूत्र-श. १३ ३. २ देवावामों की संख्या विस्तारादि सयसहस्सेमु संखेजवित्थडेसु विमाणेसु एगसमएणं केवइया सोहम्मा देवा उववजंति, केवड्या तेउलेस्सा उववजंति ? १० उत्तर-एवं जहा जोइसियाणं तिण्णि गमगा तहेव तिणि गमगा भाणियब्वा, णवरं तिसु वि 'संखेज्जा भाणियब्वा, ओहिणाणी ओहिदंसणी य चयावेयब्वा, सेसं तं चेव । असंखेज्जवित्थडेसु एवं चेव तिण्णि गमगा, णवरं तिसु वि गमएसुः 'असंखेज्जा' भाणिया । ओहिणाणी य ओहिदंसणी य संखेज्जा चयंति, सेसं तं चेव । एवं जहा सोहम्मे वत्तव्वया भणिया तहा ईसाणे वि छ गमगा भाणियव्वा । सणंकुमारे एवं चेव, णवरं इत्थीवेयगा ण उववज्जति, पण्णत्तेमु य ण भण्णंति अमण्णी तिमु वि गमएमु ण भण्णंति, सेमं तं चेव, एवं जाव सहस्सारे, णाणत्तं विमाणेसु लेम्सासु य, सेसं तं चेव । . कठिन शब्दार्थ-णाणतं-भेद-अन्तर । भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्म देवलोक में कितने लाख विमानावास कहे गये हैं ? | ९ उत्तर-हे गौतम ! बत्तीस लाख विमानावास कहे गये हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! वे विमानावास संख्यात योजन विस्तार वाले हैं या असंख्यात योजन विस्तार वाले ? उत्तर-हे गौतम ! संख्यात योजन विस्तार वाले भी हैं और असंख्यात योजन विस्तार वाले भी हैं। १० प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्म देवलोक के बत्तीस लाख विमानावासों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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