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________________ भगवती मूत्र-स. १६ उ. - देवावामों का सम्या विस्तारादि में से संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों में एक समय में कितने देव उत्पन्न होते हैं ? तेजोलेश्या वाले कितने सौधर्म देव उत्पन्न होते हैं ? ' १० उत्तर-जिस प्रकार ज्योतिषी देवों के विषय में तीन आलापक कहे, उसी प्रकार यहां भी तीन आलापक कहना चाहिये। विशेष में तीनों आलापकों में 'संख्याता' पाठ कहना तथा अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी के च्यवन सम्बन्धी पाठ भी कहना चाहिए। इसके अतिरिक्त सभी विषय पूर्वानुसार कहना चाहिये । असंख्यात योजन विस्तृत विमानावासों के विषय में भी तीनों आलापक कहने चाहिए, किंतु इनमें 'संख्यात' के स्थान में 'असंख्यात' कहना चाहिए। असंख्येय योजन विस्तृत विमानावासों में से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी तो संख्यात ही च्यवते हैं। शेष सभी वर्णन पूर्ववत् है । जिस प्रकार सौधर्म देवलोक के विषय में छः आलापक कहे, उसी प्रकार ईशान देवलोक के विषय में भी छः (तीन संख्येय योजन के विमान सम्बन्धी और तीन असख्येय योजन के विमानों के विषय में) आलापक कहना चाहिए । सनत्कुमार के विषय में भी इसी प्रकारं जानना चाहिए । इसमें अंतर इतना है कि सनत्कुमार देवों में केवल पुरुषवेदी ही उत्पन्न होते हैं, स्त्रीवेदी उत्पन्न नहीं होते और न सत्ता में ही रहते हैं। यहां तीनों आलापकों में 'असंजो' पाठ नहीं कहना चाहिए। शेष सभी वक्तव्यता पूर्वानुसार कहनी चाहिए । इसी प्रकार यावत् सहस्रार देवलोक तक कहना चाहिए । अन्तर विमानों की संख्या और लेश्या के विषय में है । शेष सभी विषय पूर्वानुसार है। विवेचन-धिर्म देवलोक से च्यवे हुओं में तीर्थंकर आदि (तीर्थंकर व कुछ अन्य भी) अवधिज्ञान और अवधिदर्शन युक्त होते हैं, अतएव च्यवन में अवधिनानी और अवधिदर्शनी भी कहने चाहिए। भवनपति. व्यन्तर और ज्योतिषी देवों से वैमानिकों में यह विशेषता है । असंख्येय योजन विस्तृत विमानों में से भी अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी तो संख्येय ही च्यवते हैं, क्योंकि वैसी आत्माएं (तीर्थंकर और कुछ अन्य के सिवाय) सदैव नहीं होती, जो अवधिज्ञान और अवधिदर्शन युक्त च्यवती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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