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__ भगवती मूत्र-ग. १३ 3. २ देवावामा की संख्या विस्तारादि
मौधर्म और ईशान देवलोक तक ही स्त्रीवेदी (देवियां ) उत्पन्न होती है । इनमे आगे सनत्कुमारादि देवलोकों में स्त्रीवेदी उत्पन्न नहीं होते, अतएव सत्ता में भी नहीं होते । वहाँ से चवे हुए स्त्रीवेदी हो सकते हैं। सनत्कुमारादि देवलोकों में सजी जीव ही उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी उत्पन्न नहीं होते । अमज्ञी में उत्पत्ति दूसरे देवलोक तक के देवों की होती है। वहाँ से चवे हुए जीव भी संजी जीवों में ही जा कर उत्पन्न होते हैं। इसलिये इन देकलोकों में उत्पाद, च्यवन आर सत्ता, तीनों आलापकों में असजी का कथन नहीं करना चाहिये।
सहस्रार देवलोक तक तिर्यच उत्पन्न होते हैं। इसलिये तीनों आलापकों में अमव्यात पद घटित हो जाता है।
विमानों की संख्या ओर लेश्याओं में अन्तर है. वह आगे बतलाया जायेगा।
११ प्रश्न-आणय-पाणएसु णं भंते ! कप्पेसु केवइया विमाणावाससया पण्णता ?
११ उत्तर-गोयमा ! चत्तारि विमाणावाससया पण्णत्ता। प्रश्न-तेणं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा ?
उत्तर-गोयमा ! संखेजवित्थडा वि, असंखेजवित्थडा वि । एवं संखेजवित्थडेसु तिण्णि गमगा जहा सहस्सारे, असंखेजवित्थडेसु उववजंतेसु य चयंतेसु य एवं चेव मंखेजा' भाणियव्वा, पण्णत्तेसु असंखेना, णवरं णोइंदियोवउत्ता अणंतरोववण्णगा अणंतरोगाढगा अणंतराहारगा अणंतरपज्जत्तगा य एएसिं जहाणेणं एको वा दो वा तिणि वा, उकोमेणं संखेजा पण्णता सेमा असंखेजा भाणियया । आरणच्चुएन्नु एवं चेव जहा आणय पागएसु, णाणत्तं विमाणेसु, एवं गेवेज्जगा वि ।
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