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३६६२६
४५१०३
४४५५
भगवतीवृत्ति पत्र १ श्लोक ३ :
१६०
६६४
१०२७
४७६४
२३४४
३६३
२. (क) भगवतीवृत्ति पत्र १२
३३ (१२)
३४ (१२)
२५ (१२)
३६ (१२)
२७ (१२)
३८ (१२)
३९ (१२)
४० (२१)
४१
कुल १३८
एतट्टी का चूर्णी जीवाभिगमादिवृत्तिलेशांश्च । संयोज्य पञ्चमङ्ग विवृणोमि विशेषतः किञ्चित् ॥
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टीकाकार व्याख्यातम् ।
३. भगवती जोड श० १० १० ११
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व्याख्या ग्रन्थ
भगवती के दो प्राचीन व्याख्या ग्रन्थ मिलते हैं- चूर्णि और वृत्ति । चूर्णि अभी मुद्रित नहीं है। वह हस्तलिखित मिलती है, उसकी पत्र संख्या ८० है । उसका ग्रन्थमान ३५६० श्लोक परिमाण है। उसके प्रारंभ में मंगलाचरण नहीं है और अन्त में प्रशस्ति नहीं है। रचनाकार और रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं है । चूर्णि की भाषा प्राकृत प्रधान है। इसे प्राकृत प्रधान चूर्णियों नंदिचूर्ण, अनुयोगद्वारचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि, आचारांगचूर्णि सूत्रकृतांगचूर्णि और जीतकल्पचूर्णि की कोटि में रखा जाता है।
वृत्ति- इसके रचनाकार हैं अभयदेव सूरि । उनका अस्तित्व काल वि० सं० (१०७५ से ११५० ) माना जाता है। इसका रचना काल वि० सं० ११२८ है । रचना स्थल है अणहिलपाटन इसका ग्रन्थमान अठारह हजार छह सौ सोलह (१६६१६) श्लोक परिमाण है। इसकी भाषा संस्कृत है। वृत्तिकार ने अपने से पूर्ववर्त्ती टीका और चूर्णि का उल्लेख किया है।' उनके सामने चूणि और टीका दोनों रहे हैं। उन्होंने टीकाकार के लिए मूल टीकाकृत और टीकाकार शब्द का प्रयोग किया है।
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आधुनिक व्याख्याएं
प्रस्तुत आगम की एक गद्यात्मक व्याख्या मिलती है। उसका नाम है टब्बा (स्तबक) वह वृत्ति के आधार पर किया हुआ संक्षिप्त विवरण है। जयाचार्य ने धर्मसी कृत यंत्र का बार-बार उल्लेख किया है। भगवती सूत्र की सबसे बड़ी है-भगवती की जोड़। इसके की जाचार्य तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य । इसकी भाषा है राजस्थानी। यह पद्यात्मक व्याख्या है, इसलिए इसे जोड़ कहा जाता है। भगवती की जोड़— इसका अर्थ है भगवती की पद्यात्मक व्याख्या । आचार्यवर ने पंच परमेष्ठी तथा अपने आचार्यों को नमस्कार कर प्रस्तुत जोड़ की रचना का संकल्प किया है
ऊं पंच परमेष्ठि नमि, भिक्षु भारीमाल । नृपति-दंदु प्रणमी र भगवद जोड़ विज्ञान' ॥१॥
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६१८,२२४
मूलटीकाकृता तु 'उच्छूडसरीरसंखित्तविउलतेय लेस्स' त्ति कर्म्मधारयं कृत्वा व्याख्यातमिति । (ख) भगवतीवृत्ति पत्र ६८
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