Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 19
________________ Jain Education International 2 X 2 v w ♡ a m २० २३ २४ २५ २६ २७ २८ ३० ३१ ३२ ५० २४ १२ ११ ११ ११ ११ ११ २८ २८ ७१५ ३६६२६ ४५१०३ ४४५५ भगवतीवृत्ति पत्र १ श्लोक ३ : १६० ६६४ १०२७ ४७६४ २३४४ ३६३ २. (क) भगवतीवृत्ति पत्र १२ ३३ (१२) ३४ (१२) २५ (१२) ३६ (१२) २७ (१२) ३८ (१२) ३९ (१२) ४० (२१) ४१ कुल १३८ एतट्टी का चूर्णी जीवाभिगमादिवृत्तिलेशांश्च । संयोज्य पञ्चमङ्ग विवृणोमि विशेषतः किञ्चित् ॥ १२४ १२४ १३२ १३२ १३२ १३२ १३२ टीकाकार व्याख्यातम् । ३. भगवती जोड श० १० १० ११ २३१ व्याख्या ग्रन्थ भगवती के दो प्राचीन व्याख्या ग्रन्थ मिलते हैं- चूर्णि और वृत्ति । चूर्णि अभी मुद्रित नहीं है। वह हस्तलिखित मिलती है, उसकी पत्र संख्या ८० है । उसका ग्रन्थमान ३५६० श्लोक परिमाण है। उसके प्रारंभ में मंगलाचरण नहीं है और अन्त में प्रशस्ति नहीं है। रचनाकार और रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं है । चूर्णि की भाषा प्राकृत प्रधान है। इसे प्राकृत प्रधान चूर्णियों नंदिचूर्ण, अनुयोगद्वारचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि, आचारांगचूर्णि सूत्रकृतांगचूर्णि और जीतकल्पचूर्णि की कोटि में रखा जाता है। वृत्ति- इसके रचनाकार हैं अभयदेव सूरि । उनका अस्तित्व काल वि० सं० (१०७५ से ११५० ) माना जाता है। इसका रचना काल वि० सं० ११२८ है । रचना स्थल है अणहिलपाटन इसका ग्रन्थमान अठारह हजार छह सौ सोलह (१६६१६) श्लोक परिमाण है। इसकी भाषा संस्कृत है। वृत्तिकार ने अपने से पूर्ववर्त्ती टीका और चूर्णि का उल्लेख किया है।' उनके सामने चूणि और टीका दोनों रहे हैं। उन्होंने टीकाकार के लिए मूल टीकाकृत और टीकाकार शब्द का प्रयोग किया है। १६६ १६२३ आधुनिक व्याख्याएं प्रस्तुत आगम की एक गद्यात्मक व्याख्या मिलती है। उसका नाम है टब्बा (स्तबक) वह वृत्ति के आधार पर किया हुआ संक्षिप्त विवरण है। जयाचार्य ने धर्मसी कृत यंत्र का बार-बार उल्लेख किया है। भगवती सूत्र की सबसे बड़ी है-भगवती की जोड़। इसके की जाचार्य तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य । इसकी भाषा है राजस्थानी। यह पद्यात्मक व्याख्या है, इसलिए इसे जोड़ कहा जाता है। भगवती की जोड़— इसका अर्थ है भगवती की पद्यात्मक व्याख्या । आचार्यवर ने पंच परमेष्ठी तथा अपने आचार्यों को नमस्कार कर प्रस्तुत जोड़ की रचना का संकल्प किया है ऊं पंच परमेष्ठि नमि, भिक्षु भारीमाल । नृपति-दंदु प्रणमी र भगवद जोड़ विज्ञान' ॥१॥ ३०८६ ८६६४ ४१८१ ७३१ ११५ ८७ १३६ २७३४ ३५१६ ६१८,२२४ मूलटीकाकृता तु 'उच्छूडसरीरसंखित्तविउलतेय लेस्स' त्ति कर्म्मधारयं कृत्वा व्याख्यातमिति । (ख) भगवतीवृत्ति पत्र ६८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 474