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के अर्थ में दौलतरामजी कृत अर्थ का भी उल्लेख मिलता है।'
समीक्षा के प्रकरण में रायपसेणइय की वृत्ति, सूत्रकृतांग, आचारांग वृत्ति, निशीथ चूणि, व्यवहारवृत्ति, आवश्यकनियुक्ति, बृहत्कल्पवृत्ति, बृहत्कल्पचूणि, पार्श्वचन्द्र सूरि कृत आचारांग स्तबक, उत्तराध्ययन, स्थानांग, धर्मसीहकृत भगवती यंत्र, लू का की हुंडी-इन ग्रन्थों का अपनी स्थापना की पुष्टि के लिए प्रयोग किया है। सूत्रकृतांग की दीपिका का भी उल्लेख मिलता है।'
भगवती-जोड़ के अध्ययन से जयाचार्य के सतत स्वाध्यायशील और बहुथुत व्यक्तित्व का साक्षात्कार हो जाता है।
विनम्रता और श्रद्धा जयाचार्य की प्रत्येक रचना में विनम्रता और श्रद्धा का स्पष्ट दर्शन होता है। प्रस्तुत रचना में भी स्थान-स्थान पर उनका साक्षात्कार होता है। बलिकर्म पद की समीक्षा के उपसंहार में आचार्यवर ने अनाग्रह की भाषा में लिखा है
स्नान विशेषण सोय, वा पूजी गृह देवता।
उभय अर्थ अवलोय, सत्य सर्वज्ञ वदै तिको।' प्रस्तुत रचना में जयाचार्य ने जिस पद्धति का उपयोग किया उसका पूरा विवरण उन्होंने ग्रन्थ के उपसंहार में दिया है। इसमें दूसरों का कितना योग है और रचनाकार का स्वयं का कितना योग है, उसका स्पष्ट उल्लेख किया है। अंत में अपनी विनम्रता प्रदर्शित करते हुए लिखा है-मैंने अपनी दृष्टि से न्याय और युक्ति की योजना की है। यदि उसमें कुछ असंगत और अयुक्त लिखा गया हो तो उसमें मेरा कोई आग्रह नहीं है। ज्ञानी जो कहें वह मुझे मान्य होगा, मेरे लिए प्रमाण होगा। और भविष्य में कोई प्रबल पण्डित हो वह आगम-मन्थन के आधार पर मेरी रचना में कोई सत्य से विपरीत कथन हो, उसका संशोधन कर सकता है। मेरी ओर से उससे यह विनम्र अनुरोध है । यदि कोई वचन यथार्थ के विपरीत तथा संदिग्ध लिखा गया हो तो उसके लिए मैं प्रायश्चित्त करता हूं।
प्रस्तत रचना के उपसंहार में जयाचार्य द्वारा किया गया आत्म-निवेदन सत्य-शोधक की भावना का शाश्वत प्रवचन है । वह उन्हीं की भाषा में प्रस्तुत है--
१. ए जोड भगवती नी रची, सूत्र वृत्ति संपेख ।
___टबो धर्मसी यंत्र फुन, अवलोकी सुविसेख ॥ भगवती-जोड़ ०१ उ० ३ ढा० १३-११७
अर्थ तेर अंतर तणो, धर्मसीह कियो जेह ।
कितलोइक त्यां माहिलो, आख्यो , इहां तेह ॥६ भगवती-जोड़ बा.१ उ०६ ठा० १८०२४
द्रव्य प्रदेश अनै पज्जवा वली, एविह पद नों जेह।
अर्थ धर्मसीह कीधो छ तिको, सांभलजो चित देह ।।७ भगवती-जोड़ श०१ उ०६ डा० १६०१२ जीवा कम्मपइट्ठिया लाह्यो, एलो टीका में अर्थ बतायो।
हिवं कहै धर्मसी वायो ।। १. भगवती-जोड ०२ उ०१ढा० १६ वियट भोइनो अर्थ वदीतो रे, दौलतरामजी कीयो इण रीतो रे ।
निवां भोग थी धर प्रीतो ।। २. भगवती-जोड़ श०१उ०८ ढा० २२।२८-११६ ३. भगवती-जोड़ श०२ उ०५ दा० ४११६६ ४. भगवती-जोड़ श०२ उ०५ ढा० ४३१४२
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