Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 18
________________ प्रस्तावना भगवान महावीर की वाणी का संकलन अंग सूत्रों में मिलता है। वे बारह हैं। इस समय बारहवां अंग-दृष्टिवाद उपलब्ध नहीं है। शेष ग्यारह अंगों में पांचवां अंग सबसे बड़ा अंग है। उसका नाम हैव्याख्याप्रज्ञप्ति और भगवती। वर्तमान में भगवती नाम अधिक प्रचलित है। प्रस्तुत आगम में ३६ हजार प्रश्नों के व्याकरण उपलब्ध थे। वर्तमान आकार में वे सब उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी सैकड़ो-सैकड़ों प्रश्नों के व्याकरण आज भी उपलब्ध हैं। तत्त्व-विद्या और दार्शनिक दृष्टि से यह अनुपम ग्रन्थ है। जीव-विज्ञान, परमाणु-विज्ञान, सृष्टि-विद्या, रहस्यवाद, अध्यात्म-विद्या आदि अनेक दृष्टिकोणों से इसका गंभीर अध्ययन, अन्वेषण और अनुसंधान अपेक्षित है। विभाग और अवान्तर विभाग समवायांग और नंदीसूत्र के अनुसार प्रस्तुत आगम के सौ से अधिक अध्ययन, दस हजार उद्देशक और दस हजार समुद्देशक हैं। इसका वर्तमान आकार उक्त विवरण से भिन्न है। वर्तमान में इसके एक सौ अड़तीस शत या शतक और उन्नीस सौ पच्चीस उद्देशक मिलते हैं। प्रथम बत्तीस शतक स्वतंत्र हैं। तेतीस से उनचालीस तक के सात शतक बारह-बारह शतकों के समवाय हैं। चालीसवां शतक इक्कीस शतकों का समवाय है। इकचालीसवां शतक स्वतंत्र है। कुल मिलाकर एक सौ अड़तीस शतक होते हैं। उनमें इकचालीस मुख्य और शेष अवान्तर शतक हैं । शतकों में उद्देशक तथा अक्षर परिणाम इस प्रकार हैं शतक उद्देशक शतक उद्देशक अक्षर परिमाण ३३८४१ २३८१८ अक्षर परिणाम ३२८०० २१६१४ ० ० ० ३६७०२ ० Moro-or~ ० ० ३६८१२ १५६३६ ८४१२ २२४४३ ८०२७ १६८७१ ० २५६६१ १८६५२ २४६३५ ४८५३४ ४५८५६ ६६०७ ३२३३८ ० ० m . ० W १. समवाओ, सूत्र ६३ : नंदी सू० ८५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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