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धर्म और दर्शन (ब्रह्मचर्य)
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जिसके हाथ, पैर कट चुके हो, नाक, कान बेडोल तथा जो सौ वर्ष आयु की हो गई हो, ऐसी वृद्धा और कुरूपा स्त्री का ससर्ग भी ब्रह्मचारी को छोड देना चाहिए ।
जैसे विल्ली की वस्ती के पास चूहो का रहना अच्छा नही होता, वैसे ही स्त्रियो के निवासस्थान के बीच ब्रह्मचारी का रहना योग्य नही है।
जिस प्रकार मुर्गी के बच्चे को विल्ली द्वारा प्राण-हरण का सदा भय बना रहता है, ठीक उसी प्रकार ब्रह्मचारी को भी स्त्री-सम्पर्क मे आते हुए अपने ब्रह्मचर्य के भग होने का भय बना रहता है ।
उग्र ब्रह्मचर्य व्रत का धारण करना अत्यन्त कठिन है।
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जिस प्रकार सर्व नदियो मे वैतरणी नदी दुस्तर मानी जाती है उसी प्रकार इस लोक मे अविवेकी पुरुप के लिए स्त्रियो का मोह जीतना अत्यन्त कठिन है।
१३५ जैसे पवन अग्निशिखा को पार कर जाता है वैसे ही महान् त्यागीपराक्रमी पुरुष प्रिय स्त्रियो के मोह को उल्लघन कर जाते हैं।
जो पुरुप स्त्रियो का सेवन नही करते वे मोक्ष पहुंचने मे सब से अग्रसर होते है।
१३७ शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन समस्त पुद्गलो के परिणमन को अनित्य जानकर ब्रह्मचारी साधक मनोज-विपयो मे राग-भाव न करे।