Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan
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२७८ ___भगवान महावीर के हजार उपदेश
१८३
जइ मज्झ कारणा एए, हम्मति सुवहूजिया। न मे एय तु निस्सेस, परलोगे भविस्सई ।।
१८४ वेराइ कुव्वई वेरी, तओ वेरेहिं रज्जती।
१८५ उदगस्सफासेण सिया य सिद्धी, सिज्झिसु पाणा वहवे दगसि ।
१८६ चइज्ज देह न हु धम्म सासण ।
१८७ एव तक्काइ साहिता, धम्माधम्मे अकोविया । दुक्ख ते नाइतुट्टति, सउणी पजर जहा ॥
१८८
गिरि नहेहिं खणह, अय दन्तेहिं खायह । जायतेयं पाएहिं हणह, जे भिक्खु अवमन्नह ।।
९८९ ममत्तबधं च महन्भयावह ।
ममाइ लुप्पइ वाले अन्नमन्नेहिं मुच्छिए ।
९६१
निरटिया नग्गरूई उ तस्स, जे उत्तमट्ठ विवज्जासमेई ।
९८३ उत्त० २२।१९९८४. सूत्र० श६७ ९८५ सूत्र० १७.१४ ९८६. दश० चू० १११७ ६८७ सूत्र० १।१।२।२२ ६८८ उत्त० १२।२६ ६८६ उत्त० १९९८ ६६०. सूत्र० ११११४६६१. उत्त० २०४६

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