Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan

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Page 298
________________ शिक्षा और व्यवहार (विकोणं सुभाषित) २७७ ६७३ न कभी ऐसा हुआ है, न होता है, और न कभी होगा ही कि जो चेतन है वे कभी अचेतन-जट हो जायें और जो अचेतन-जड हैं वे चेतन हो जायें। ६७४ कुछ मनुप्य गरीर तथा धन आदि मे दीन-गरीब होते हैं किन्तु उनका मन और सपाल्प वडा ही उदार होता है। ६७५ जो व्यापारी ग्राहक को अभीष्ट वस्तु देता है और प्रीति-वचन से सन्तुष्ट भी करता है वह व्यवहारी है। जो न देता है और न प्रीतिवचन से ही सन्तुष्ट करता है वह मव्यवहारी है। ९७६ उम्र और यौवन प्रतिपल व्यतीत हो रहा है । ৩৩ वयावृत्त्य-सेवा से जीव तीर्थकर नाम-गोत्र का उपार्जन करता है। ६७८ स्वाध्याय से जीव ज्ञानावरण कर्म का क्षय करता है । ६७६ जीवन जल के बुलबुले के समान तथा कुशा के अग्रभाग पर स्थित जलविन्दु के समान चचल है। ६८० पापकारी प्रवृत्ति अन्तत दु ख ही देती है। ६८१ समार के उन सभी मनुष्यो को और देवताओ की भी वह सुख प्राप्त नहीं है, जो सुख अव्यावाध स्थिति वाले सिद्धात्माओ को है। १८२ जो व्यवहार धर्म सम्मत है, जिसका तत्त्वज्ञ आचार्यों ने सदा आचरण किया है, उस व्यवहार का आचरण करनेवाला मनुष्य कही भी निन्दा का पात्र नही होता ।

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