Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan

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Page 296
________________ शिक्षा और व्यवहार (विकीर्ण सुभाषित) २७५ ९६४ जिस का हृदय कलुपित और माया युक्त है, किन्तु वाणी से मधुरभाषी है, वह मनुष्य विप के घडे पर मधु के ढक्कन के समान है। ६६५ जिस का हृदय भी पापमय है, और वाणी से भी सदा कठोर बोलता है वह व्यक्ति विप के घडे पर विप के ढक्कन के समान है। पापात्मा स्वय के ही कर्मों से दुखी होता है । १६७ ससार मे मनुप्य भिन्न-भिन्न विचार वाले होते हैं । ९६८ कई लोग छोटी-छोटी बातो पर क्षुब्ध हो जाते हैं । ६६६ सूर्योदय होने पर भी चक्षु के विना नही देखा जाता है। वैसे ही स्वय मे कोई कितना ही विज्ञ क्यो न हो, तथापि गुरु-मार्गदर्शक के अभाव मे तत्त्वदर्शन नहीं कर पाता। ६७० साधक को ऐसा हित-मित भोजन करना चाहिए, जो जीवन-यात्रा एव सयमयात्रा के लिए उपयोगी हो सके, और जिससे न किसी प्रकार का विभ्रम हो और न धर्म की भ्र सना ही। ६७१ हे नरेश | जरा मनुष्य की सुन्दरता को नष्ट कर देती है। ६७२ इस विराट विश्व मे परमाणु जितना भी ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहाँ इस जीव ने जन्म-मरण न किया हो।

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