Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan

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Page 295
________________ २७४ भगवान महावीर के हजार उपदेश ६६४ जं हिययं कलुसमय, जीहावि य मधुरभासिणी णिच्चं । जमि पुरिसमि विज्जति से विसकुभे महुपिहाणे || ६६५ ज हियय कलुसमय, जीहाऽवि य कड्यभासिणी णिच्च । जमि पुरिसमि विज्जति, से विसकुभे विसपिहाणे || ६६६ सकम्मुणा किच्चइ पावकारी | ६६७ पुढो छदा इह माणवा । ६६८ वयसा वि एगे बुइया कुप्पति माणवा । ६६६ सूरोदए पासति चक्खुणेव । ६७० तहा भोत्तव्वं जहा से, जायामाता य भवति । न य भवति विव्भमो, न भसणा य धम्मस्स ॥ ६७१ वण्ण जरा हरइ नरस्स रायं । ६४. स्था० ४ | ३ ६६७ आचा० १।५।२ ६७० प्रश्न० २४ ६७२ नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पसे । जत्थण अयं जीवे न जाए वा, न भए वा वि ॥ ६६५ स्था० ४|४ ६६६. स्था० ४|४ १६८ आचा० ११५/४ ९७१. उत्त० १३ २६ ६६६ सूत्र० १११४ | १३ ६७२ भग० १२७

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