Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan

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Page 302
________________ शिक्षा और व्यवहार (विकीर्ण सुभाषिक ) ६६२ सभी दानो मे अभयदान सर्वश्रेष्ठ है । ६६३ अनगार बोले - हे राजन् । मेरी तरफ से तुझे अभय है और तुम भी अभयदाता वनो । इस अनित्य जीव लोक मे तू हिंसा मे आसक्त क्यो बन रहा है ? २८१ ૯૨૪ देवता तीन कारणो से पश्चात्ताप करते हैं-- अहो ! मैंने विशेष श्रुत ज्ञान नही पढा, अधिक सयम नही पाला, एव विशुद्धचारित्र का स्पर्श नही किया । ६६५ चार प्रकार की बुद्धि कही है - औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी, पारिणामिकी | ६६६ जिनेश्वर देव की आज्ञा के पालन मे ही धर्म है | ६६७ जीवन का एक क्षण भी बढ नही सकता । ६६८ मरने के बाद जीव को सद्गति सुलभ नहीं है । &&& इस लोक मे निस्वार्थ भाव से देनेवाले दाता और निस्वार्थ भाव से लेने वाले सन्त -- दोनो ही अति दुर्लभ है । अत दोनो ही सद्गति को प्राप्त होते हैं । १००० राग-द्वेष के सम्पूर्ण क्षय से यह जीव एकान्त सुखरूप - मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । १००१ प्रभु ने सर्वत्र निष्कामता को उत्तम बताया है ।

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