Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan

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Page 292
________________ शिक्षा और व्यवहार ( बोध-सूत्र ) ६४६ सद्बोध की प्राप्ति का अवसर पुन पुन मिलना सुलभ नही है । ६५० समय पर समय का उपयोग करना चाहिए । ह५१ पाप कर्म न स्वय को करना चाहिए और न दूसरो से करवाए । ६५२ साधक को अपनी शक्ति कभी नही छुपाना चाहिए । ६५३ कलह-झगडा करनेवाला असमाधि को उत्पन्न करनेवाला है । ६५४ दूसरो की निन्दा किसी भी दृष्टि से हितकर नही है । २७१ ६५५ असत्यभापी झूठ के पहले, पीछे तथा प्रयोग करते समय तीनो ही काल मे दुखी होता है । ६५६ हे पुरुष । तू जीवन की क्षणभंगुरता को जानकर शीघ्र ही पाप कर्मों से मुक्त हो जा । ६५७ निस्सार क्षणभंगुर देह के पोषण के लिए मनुष्य पापकर्म करके भयकर दुख उठाते हैं । ६५८ यह शरीर जैसा अन्दर से असार है, वैसा बाहर से भी अमार है और बाहर से जैसा मसार है, वैसा अन्दर से भी असार है । /

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