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धर्म और दर्शन (तप)
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२२१ तप का आचरण करना तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है।
२२२ इच्छानिरोध-तप से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
२२३ तप की महिमा तो प्रत्यक्ष मे दिखलाई देती है, किन्तु जाति की महिमा तो कोई नजर नहीं आती हैं ।
२२४ तप के द्वारा अपने को कृश करो, अपने को जीर्ण करो, भोग-वृत्ति को जर्जर करो।
२२५ तप से पूर्व-बद्ध कर्मों का नाश करो।
२२६ तप दो प्रकार का बतलाया है-बाह्य और आभ्यतर । बाह्य तप छ प्रकार का कहा है, इसी प्रकार आभ्यन्तर तप भी छ प्रकार का है।
२२७ अनशन, ऊनोदरी, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, काय-क्लेश और प्रति सलोनता ये बाह्य तप के छ भेद है ।
२२८ प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और कायोत्सर्ग-ये आभ्यन्तर तप के छ भेद हैं ।
२२६ तप से आत्मा का शुद्धिकरण होता है ।
२३० तप से व्यवदान–पूर्व-कर्मों का क्षय कर आत्माशुद्धि प्राप्त करता है ।