Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan

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Page 249
________________ रात्रिभोजन त्याग ७६८ अत्थगयमि आइच्चे, पुरत्था य अणुग्गए। आहारमाइय सव्व, मणसा वि न पत्थए । ७६६ सन्तिमे सुहमा पाणा, तसा अदुव थावरा। जाई राओ अपासंतो, कहमेसणिय चरें ।। ८०० उदउल्ल वीयससत्तं, पाणा निव्वडिया महिं । दिया ताइ विवज्जेज्जा, राओ तत्थ कह चरे ॥ ८०१ चउन्विहे वि आहारे, राईभोयण वज्जणा । सन्निही-सचओ चेव, वज्जेयब्वो सुदुक्करं ।। ८०२ अग्ग वणिएहि आहिय, धारति राइणिया इह । एव परमामहव्वया, अक्खाया उ सराइभोयणा ।। ८०३ राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो । ५०४ सव्वाहार न भुजति, निग्गथा राइभोयणं । ७६८ दश० ८१२८ ८०१ उत्त० १६।३० ८०४. दश० ६.२६ ७६६ दश० ६२३ ८०२ सूत्र० १२।३। ३ ८ ०० दश० ६२४ ८०३. उत्त० ३०१२

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