Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan
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परलोक
६२२ तेणावि ज कय कम्म, सुह वा जइ वा दुह । कम्मुणा तेण सजुत्तो, गच्छइ उ पर भव ।।
६२३ गार पि अ आवसे नरे, अणुपुव्व पाहिं सजए। समता सव्वत्थ सुव्वते, देवाण गच्छे स लोगय ।
६२४ पच्छा वि ते पयाया, खिप्प गच्छन्ति अमरभवणाइ। जेसि पियो तवो सजमो य, खती य वभचेर च ।।
६२५-६२६ आसण सयणं जाण, वित्त कामे य भुजिया दुस्साहड धण हिच्चा, वहु सचिणिया रय ।। तओ कम्मगुरु जतु, पच्चुप्पन्नपरायणे । अयम्ब आगयाएसे, मरणतम्मि सोयई ।।
६२७ अद्धाण जो महत तु, अप्पाहेओ पवज्जई । गच्छन्तो सो दुही होइ, छुहा-तण्हाए पीडिओ।
१२२ उत्त० १८।१७९ २३ सत्र० २।३।१३ १२४. दश० ४।२८ ६२५ उत्त० ७१८ ६२६. उत्त० ७९९२७ उत्त० १६४१८
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