Book Title: Bhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Author(s): Ganeshmuni
Publisher: Amar Jain Sahitya Sansthan

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Page 288
________________ ३१ मनुष्य का अच्छा किया हुआ सर्वकर्म सफल होता है । ३२ जन्म-मरण के स्वरूप का भली-भाँति परिज्ञान कर चारित्र मे सुदृढ होकर विचरे । ३३ पाप-कर्म साधक न स्वय करे, न दूसरो से करवाये । ६३४ अपनी योग्य शक्ति को कभी भी छुपाना नही चाहिये । बोध-सूत्र ६३५ वन्धन और मोक्ष वस्तुत हमारे भीतर मे ही है । ६३६ जो व्यक्ति दूसरो का तिरस्कार करता है, वह ससार-वन मे लम्बे समय तक परिभ्रमण करता रहता है । ६३७ मन मे रहे हुए विकारो के सूक्ष्म शल्य को मिटाना अत्यन्त कठिन हो जाता है । ६३८ जो क्षण वर्तमान मे वर्त रहा है, वही महत्त्वपूर्ण है । अत साधक को उसे सफल बनाना चाहिए । ६३६ जीवन और रूप बिजली की चमक की तरह चचल है ।

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