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जीवन और कला (मान)
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अज्ञानवश अपने आपको ज्ञानी समझनेवाला समाधि से बहुत दूर है ।
जो मानवाला है उसके हृदय मे माया भी निवास करती है ।
६२७ मान विनय-गुण का नाश करता है ।
६२८ अहकार को नम्रता से जीतें ।
गोत्राभिमानी को उसकी जाति व कुल शरणभूत नही हो सकते । मात्र ज्ञान और धर्म के सिवाय अन्य कोई भी रक्षा नही कर सकते।