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तप
२१३
जिस प्रकार शकुनी नामका पक्षी अपने परो को फड फडा कर उन पर लगी हुई धूल को झाड देता है उसी प्रकार तपस्या के द्वारा मुमुक्षु अपने आत्म-प्रदेशो पर लगी हुई कर्म रज को दूर कर देता है ।
२१४
आत्मा को शरीर से विलग जान कर भोग-लिप्त शरीर को तपश्चर्या के द्वारा धुन डालना चाहिए ।
२१५
समस्त दुखो से मुक्ति चाहनेवाले महपि सयम और तप के द्वारा अपने पूर्वसचित कर्मों का क्षय कर परम सिद्धि को प्राप्त करते हैं ।
२१६
तप रूपी लोह वाण से युक्त धनुप के द्वारा कर्मरूपी कवच को मेद डालें ।
२१७
देह का दमन एक तप है और वह महान् फलवाला है ।
२१८
करोडो - भवो के सचित कर्म तपश्चर्या के द्वारा निजीर्ण- नष्ट हो जाते हैं ।
२१६
अपने वल, पराक्रम, श्रद्धा और आरोग्य को देखकर क्षेत्र और काल को पहचान कर शक्ति के अनुसार अपनी आत्मा को तप आदि के अनुष्ठान मे नियुक्त करे ।
२२०
तप के द्वारा साधक को पूजा–प्रतिष्ठा की अभिलापा नही करनी चाहिए ।